लेखनी कविता - नयी-नयी कोपलें -माखन लाल चतुर्वेदी

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नयी-नयी कोपलें -माखन लाल चतुर्वेदी  नयी-नयी कोपलें, नयी कलियों से करती जोरा-जोरी  चुप बोलना, खोलना पंखुड़ि, गंध बह उठा चोरी-चोरी।  उस सुदूर झरने पर जाकर हरने के दल पानी पीते  निशि ...

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